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बूचरखाने की तरफ से मैं बढ़ा चला जा रहा था। एक बकरा बड़ी बेदर्दी के साथ काटा जा रहा था। पहले वह जोर-जोर से मिमियाया; लेकिन धीरे धीरे उसकी आवाज़ अनंत में दफ़न हो गयी।
मैं बहुधा बुचरखाने की ओर जाने से बचता रहा हूँ; परंतु आज दुर्घटनावश पहुँच गया, और आँखें नम हो गयीं।
वहाँ बॅंधा एक दूसरा बकरा शायद मुझे आब्जर्व कर रहा था। झट वह मेंरे पास आया और बोल पड़ा- क्यों भई किसी और लोक के हो क्या?
मैंने कहा- नहीं तो, यहीं का हूँ… क्यों, इतना चौंक क्यों रहे हो?
बकरा- लगता तो नहीं है। यहाँ के लोग तो ऐसे नहीं होते। हम पशुओं की हत्या पर किसी इंसान की आँखों का भर आना….कुछ अजीब लग रहा है! मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा!
बकरा खुद को चिकोटी काटता है।
बकरा- हे भगवान! भरोसा नहीं हो रहा। हमारी जघन्य हत्या से किसी मनुष्य की आँख में आँसू! ना, ना! ऐसा कदापि नहीं हो सकता!
बकरा मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक ध्यान से देखता है। फिर किसी ग़हरी सोंच में डूब जाता है।
“नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। कदापि नहीं। इन मनुष्यो को तो इस दुनिया की बड़ी चिंता है। वे हमें इसलिए खाते हैं कि यदि वे हमें नहीं खाएंगे तो हमारी संख्या बढ़ जाएगी, हम धरा पर असंतुलन पैंदा कर देंगे, हमारी वजह से खाद्य संकट उत्पन्न हो जाएगा। हमारे गोश्त से इन्हें ऊर्जा मिलती है, बकैती करने का जोश मिलता है, दुनिया भर के वाद पर बतियाने, समाज परिवर्तन करने का जज्बा मिलता है। फिर हमारी हत्या से इन्हें क्यों तकलीफ?
जरूर कोई स्वार्थ है। नहीं तो मनुष्य इतना कमज़ोर नहीं कि हम जैसे निरीह मूक प्राणी उसकी भावनाओं को झकझोंर दें। इनकी भावनाओं को तो वे झकझोरेंगे जो फेसबुक पर अपना दर्द बयान कर दें, अपने नाम पर कैण्डल लाईट मार्च निकलवा दें..!”
बकरा फिर सोंच में डूब जाता है।
“कहीं यह कोई नेता तो नहीं?”
बकरा तुरंत पास बंधे दूसरे बकरे से पूछता है- भाई, सरकार ने हम पशुओं को वोट देने का अधिकार तो नहीं न दे दिया?
दूसरा बकरा- पता नहीं।
पहला बकरा- नहीं मुझे तो ऐसा ही लग रहा है। जरूर हम भी भारत देश के वोटर हो गए हैं, और यह व्यक्ति जरूर किसी पार्टी का नेता होगा। हाँ तभी यह हमें कटता हुआ देख कर सहानुभूति दिखा रहा है। यह भारत देश है। यहाँ वोट के नाम पर कुछ भी हो सकता है।
दूसरा बकरा- तब तो हम जरूर कटने से बच जाएंगे। सरकार अब जरूर पशुओं के काटे जाने पर प्रतिबंध लगा देगी। उसके होशियार ब्यूरोक्रेट जरूर यह साबित कर देंगे कि यदि मनुष्य हमें नहीं खाएगा तब भी जीवन सुरक्षित रह सकता है। अब हमें काटे जाने को लेकर किसी की भी बकैती नहीं चलेगी…। तंत्र जरूर लोगों की संवेदना को झकझोरने में कामयाब हो जाएगा। अब हमारी हत्याओं पर भी परिचर्चाएँ होंगी…।
उस बकरे की बात सुनकर मौजूद सारे बकरें खुश हो जाते हैं। वे एक-दूसरे को गले लगाते हैं और नाचने-गाने लगते हैं।
एक बकरा किनारे खड़ा यह सब देखता है। वह आकाश की ओर ताकते हुए बोल पड़ता है- हे भगवान! काश भारत में रोज़-रोज़ चुनाव (इलेक्शन) हो!
पेशकश-
अभिषेक त्रिपाठी
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